आज से पर्यूषण पर्व का शुभारंभ
आत्मशुद्धि, तप और क्षमा का संदेश देने वाला महापर्व
✍️ जनकलम संपादक – विकास कुमार
जैन समाज का सबसे बड़ा साधना पर्व
भाद्रपद मास में प्रतिवर्ष आने वाला पर्यूषण पर्व आज से आरंभ हो गया है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्ममंथन, आत्मशुद्धि और जीवन की दिशा बदलने वाला तपोत्सव है।
आठ से दस दिनों तक जैन समाज संयम, उपवास, स्वाध्याय और ध्यान में लीन होकर आत्मा के उत्थान की साधना करता है।
पर्यूषण का अर्थ और महत्व
‘पर्यूषण’ शब्द का अर्थ है – आत्मा में ठहरना। यानी कुछ समय के लिए सांसारिक मोह-माया, इच्छाओं और भोग-विलास से दूर होकर अपने आत्म स्वरूप में स्थिर होना।
इसीलिए इसे आत्मकल्याण, मोक्ष और अध्यात्म की ओर बढ़ने का मार्ग कहा जाता है।
कितने दिन चलता है पर्व?

श्वेतांबर समाज – 8 दिन तक अष्टान्हिका पर्व।
दिगंबर समाज – 10 दिन तक दशलक्षण पर्व।
दोनों ही परंपराओं में उद्देश्य एक ही है – आत्मा की शुद्धि और संयम का पालन।
तप, व्रत और संयम की साधना
इन दिनों में जैन समाज विभिन्न प्रकार के व्रत और तपस्या करता है –
पूर्ण उपवास
एकासना (एक बार भोजन)
केवल जल या फलाहार
स्वाध्याय, ध्यान और जप
यह तपस्या केवल शरीर को कष्ट देने के लिए नहीं, बल्कि इच्छाओं पर नियंत्रण कर आत्मबल को जागृत करने के लिए की जाती है।
धार्मिक कार्यक्रम और वातावरण
जिनालयों और मंदिरों में सुबह से शाम तक पूजा-अर्चना, प्रवचन और सामूहिक भक्ति होती है।

साधु-साध्वियाँ प्रवचन में अहिंसा, संयम, करुणा और क्षमा का महत्व बताते हैं।
घर-घर में धार्मिक पुस्तकें पढ़ी जाती हैं, भक्ति गीत गाए जाते हैं और परिवार के सदस्य स्वाध्याय में समय बिताते हैं।
क्षमा और ‘मिच्छामी दुक्कड़म्’ की परंपरा
पर्युषण का अंतिम दिन सबसे भावुक और महत्वपूर्ण होता है। इस दिन जैन समाज एक-दूसरे से मिलकर कहता है –
“मिच्छामी दुक्कड़म्”
अर्थात – यदि मुझसे जाने-अनजाने में कोई भूल या अपराध हुआ हो, तो कृपया क्षमा करें।
यह परंपरा मन की कटुता मिटाकर भाईचारे, सद्भाव और प्रेम का वातावरण रचती है।
मानवता के लिए संदेश
पर्यूषण पर्व केवल जैन समाज का नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रेरणादायी है। यह हमें सिखाता है –
क्रोध, लोभ और अहंकार को त्यागना।
क्षमा, करुणा और अहिंसा को अपनाना।
आत्मा की शुद्धि कर मोक्ष की ओर बढ़ना।

आत्मशुद्धि और प्रेम का उत्सव
आगामी आठ से दस दिन तक जैन समाज संयम और साधना में लीन रहेगा। और जब अंतिम दिन हर कोई ‘मिच्छामी दुक्कड़म्’ कहकर एक-दूसरे से क्षमा माँगेगा, तब यह पर्व सचमुच मानवता, प्रेम और आत्मशुद्धि का उत्सव बन जाएगा।
पर्यूषण पर्व पर जैन समाज बिजुरी के अध्यक्ष मुकेश जैन ने बताया कि भाद्र शुक्ल पंचमी से आरंभ हुए जैन धर्म के महापर्व पर्यूषण का अपना अलग महत्व है हमारे द्वारा मन वचन और काया से हुई गलतियों का प्रायश्चित एवं आत्मशुद्धि के रूप में हम अंतर्मलों को क्षालने के लिए दश लक्षण धर्म में दश धर्मों का पालन करते हैं उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, आर्ज़व, शौच, सत्य ,संयम, तप, त्याग, आकिंचन, ब्रह्मचर्य जैसे धर्मों की आराधना कर आत्म कल्याण और विश्वशांति, अहिंसा का संदेश देते है।